- Navratri 7th day:
- तारीख और दिन: 21 अक्टूबर 2023, शनिवार
- देवी: मां कालरात्रि
- महत्व: मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की काल से रक्षा होती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
maan kaalaraatri का स्वरूप:
- maan kaalaraatri का शरीर अंधकार की तरह काला है।
- माँ कालरात्रि की श्वास से आग निकलती है।
- बाल बड़े और बिखरे हुए हैं।
- गले में पड़ी माला बिजली की तरह चमकती है।
- माँ कालरात्रि के चार हाथ और तीन नेत्र हैं।
- Navratri पूजन मुहूर्त:
- ब्रह्म मुहूर्त: 04:44 ए एम से 05:35 ए एम
- प्रातः सन्ध्या: 05:09 ए एम से 06:25 ए एम
- अभिजित मुहूर्त: 11:43 ए एम से 12:28 पी एम
- और अन्य…
maan kaalaraatri की पूजन विधि Navratri
- पूजा विधि:
- maan kaalaraatriकी पूजा-अर्चना सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- maan kaalaraatriकी पूजा-अर्चना की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- मां को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें।
- पुष्प, रोली कुमकुम, मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें।
- मां कालरात्रि को शहद का भोग अवश्य लगाएं।
- कालरात्रि की पूजा-अर्चना भी करें।
- लाभ: कालरात्रि की पूजा-अर्चना से भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान होता है।
- सिद्ध मंत्र: ‘ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।’
- भोग: मां कालरात्रि को गुड़ अतिप्रिय है। नवरात्रि के सातवें दिन गुड़ का भोग लगाना शुभ होता है।
- शुभ रंग: मां कालरात्रि को लाल रंग अतिप्रिय है।
Navratri मां कालरात्रि की कथा:
- एक समय की बात है, जब दैत्य राजा रक्तबीज के अत्याचार से सभी देवता और संत परेशान थे। रक्तबीज की विशेषता यह थी कि जब भी उसका एक बूँद भी रक्त ज़मीन पर गिरता, तो उसी स्थान पर उसका एक और रूप उत्पन्न हो जाता। इससे उसे मारना लगभग असंभव हो गया था।
- जब देवता इस समस्या से निपटने में असमर्थ हो गए, तो वे माँ दुर्गा की शरण में गए। माँ दुर्गा ने अपने अंग्रय से माँ काली का अवतार लिया। माँ काली ने अपनी जीभ बाहर की और उसे ज़मीन पर फैला दिया, ताकि रक्तबीज का कोई भी रक्त ज़मीन पर न गिरे। फिर उन्होंने रक्तबीज को मार दिया और उसका सारा रक्त पी लिया।
- इस प्रकार, माँ काली ने रक्तबीज का वध किया और देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई। माँ कालरात्रि का यह रूप माँ काली के रूप में प्रकट हुआ था, जो अपने भक्तों के लिए कृपालु है, लेकिन दुष्टों और अधर्मियों के लिए विनाशकारी है।
- इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान का कोई भी रूप, चाहे वह कितना भी भयानक क्यों न हो, अच्छाई और धर्म की स्थापना के लिए ही होता है।
- माँ कालरात्रि, नवरात्रि के सातवें दिवस की पूजा जाती हैं। उनका नाम ‘काल’ और ‘रात्रि’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘समय की रात्रि’। उनका स्वरूप भयानक होता है, लेकिन वे भक्तों के प्रति अत्यंत कृपालु हैं।
- एक समय की बात है, जब दैत्य राजा रक्तबीज ने स्वर्ग और पृथ्वी पर अपनी प्रभुता स्थापित कर दी थी। उसकी विशेषता थी कि जब भी उसका एक बूँद रक्त ज़मीन पर गिरता, तो उसी स्थान पर उसका एक और रूप उत्पन्न होता। इस विशेषता के कारण, देवता उसे पराजित करने में असमर्थ थे।
- देवता और ऋषियों के अनुरोध पर माँ दुर्गा ने माँ काली का रूप धारण किया। उनका रंग अंधकार की तरह काला था, आंखें लाल और जीभ बाहर निकली हुई थी। उन्होंने अपनी जीभ ज़मीन पर फैला दिया, ताकि रक्तबीज का रक्त ज़मीन पर न गिरे।
- रक्तबीज और माँ काली के बीच भयानक संघर्ष हुआ। जब रक्तबीज ने देखा कि उसका रक्त ज़मीन पर नहीं गिर रहा है, तो वह हैरान रह गया। उसने अनेक प्रकार के आक्रमण किए, लेकिन माँ काली ने उसे हर बार पराजित किया। अंत में, माँ काली ने रक्तबीज को पकड़ा और उसका सारा रक्त पी लिया, जिससे वह मर गया।
- इस प्रकार, माँ काली ने रक्तबीज को पराजित किया और देवताओं और संतों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई। जब सब कुछ शांत हुआ, तो माँ काली अपने मूल स्वरूप में वापस लौट गईं।
- इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान का कोई भी रूप, चाहे वह कितना भी भयानक क्यों न हो, अच्छाई और धर्म की स्थापना के लिए ही होता है। यह हमें यह भी दिखाता है कि अधर्म का अंत अवश्य होता है, चाहे वह कितना भी प्रबल क्यों न हो।