बीते सात अक्टूबर में हमास द्वारा इसराइल पर किए गए अभूतपूर्व हमले को इस्लामिक स्टेट के साथ तुलना की गई है।
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इस्लामिक स्टेट ग्रुप क्यों हमास से करता है नफ़रत?”
हमास और इस्लामिक स्टेट : दोनों ही संगठन अपने आप को इस्लाम के प्रतिष्ठान के रूप में प्रस्तुत करते हैं, लेकिन उनके बीच गहरे वैचारिक और राजनीतिक मतभेद हैं। जब हमास ने इसराइल पर हमला किया, तो कुछ लोगों ने इसे इस्लामिक स्टेट की गतिविधियों से तुलना की। लेकिन ऐसा करते समय, उन्होंने दोनों संगठनों के बीच गहरे वैचारिक मतभेदों और आपसी रंजिश के लंबे इतिहास को नज़रअंदाज़ किया।
इस्लामिक स्टेट के समर्थकों ने इस तुलना पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसे असहमति और नाराज़गी के साथ देखा। इस्लामिक स्टेट हमास को ‘काफ़िर संगठन’ मानता है। ‘काफ़िर’ अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है वह व्यक्ति जो ईश्वर में यकीन नहीं करता। इसलिए, इस्लामिक स्टेट के लिए हमास के साथ किसी भी प्रकार की तुलना अस्वीकार्य है।
इसके अलावा, इस्लामिक स्टेट हमास को ईरान का प्रॉक्सी मानता है। उनका मानना है कि हमास ईरान की सत्ता के लिए काम करता है और इसलिए उसे विश्वासयोग्य नहीं माना जा सकता।
हमास और इस्लामिक स्टेट के बीच अन्य मतभेद भी हैं। जैसा कि इस्लामिक स्टेट दावा करता है कि हमास राजनीतिक और राष्ट्रवादी उद्देश्यों के लिए काम करता है और चुनाव प्रक्रिया में भी शामिल होता है। इसके विपरीत, इस्लामिक स्टेट अपने आप को एक पूरी तरह से धार्मिक संगठन मानता है जो केवल इस्लामी शरिया के अनुसार ही काम करता है।
इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए हमें इस तथ्य को समझना होगा कि इस्लामिक स्टेट और हमास दोनों ही अलग-अलग राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य से उत्पन्न हुए हैं। जबकि दोनों संगठन इस्लाम के नाम पर कार्य करते हैं, उनके उद्देश्य और दृष्टिकोण अलग हैं। इसलिए, उन्हें एक ही आधार पर मूल्यांकन करना और उन्हें एक ही तरह से देखना उचित नहीं है।
हमास और इस्लामिक स्टेट :(आईएस) के बीच तनाव
हमास और इस्लामिक स्टेट : के बीच तनाव का इतिहास पुराना है। जबकि दोनों संगठन अपने आप को इस्लाम के प्रतिष्ठान के रूप में प्रस्तुत करते हैं, उनके बीच वैचारिक और राजनीतिक मतभेद हैं। आईएस हमास पर शरिया के मुताबिक़ नहीं चलने और जिहादियों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाता है।
हमास के इसराइल पर हुए हमले और उसके बाद पैदा हुए हालातों पर इस्लामिक स्टेट ने पहले कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। लेकिन इस हमले के 15 दिन बाद, आईएस ने पश्चिमी देशों में यहूदी ठिकानों पर हमले करने का आह्वान किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि आईएस अपनी नीतियों और उद्देश्यों में डटा हुआ है और उसे हमास के कार्यकलापों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
इस्लामिक स्टेट और उसके समर्थकों ने जोर देकर यह बताया है कि उनका रुख हमास के प्रति वैसा का वैसा ही है। वे हमास को एक ‘काफ़िर संगठन’ मानते हैं और उसके झंडे के तले होने वाली किसी भी चरमपंथी गतिविधि का समर्थन नहीं करते।
आईएस का मानना है कि हमास अपने राजनीतिक और राष्ट्रवादी उद्देश्यों के लिए धर्म का उपयोग कर रहा है, जो आईएस के वैचारिक दृष्टिकोण से विरुद्ध है। इसके अलावा, आईएस का विश्वास है कि हमास शरिया के सख्त अनुसार नहीं चल रहा है, जिससे वह इस्लाम के सच्चे अध्यायों से भटक रहा है।
इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए हमें इस तथ्य को समझना होगा कि इस्लामिक स्टेट और हमास दोनों ही अलग-अलग राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य से उत्पन्न हुए हैं। जबकि दोनों संगठन इस्लाम के नाम पर कार्य करते हैं, उनके उद्देश्य और दृष्टिकोण अलग हैं। इसलिए, उन्हें एक ही आधार पर मूल्यांकन करना और उन्हें एक ही तरह से देखना उचित नहीं है।
हमास की इस्लामिक स्टेट से तुलना क्यों?
7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए हमले के प्रतिक्रिया में, इसराइली समाज में एक विवाद उत्पन्न हुआ है। कई इसराइली अधिकारियों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने हमास को इस्लामिक स्टेट से तुलना की है, जिससे उनकी विचारधारा और क्रियावली में समानता दिखाई दे रही है।
इसराइली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतान्याहू ने इस तुलना को और भी मजबूती दी, जब उन्होंने कहा कि “हमास और आईएसआईएस में कोई अंतर नहीं है।” उनका मानना है कि जिस तरह इस्लामिक स्टेट को नष्ट किया गया था, उसी तरह हमास को भी समाप्त किया जाना चाहिए।
इस तुलना की मुख्य वजह यह माना जा रहा है कि हमास के हमले में इसराइली नागरिकों की बड़ी संख्या में हत्या हो गई। इस हमले में 1400 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और सौ से ज़्यादा लोग अग़वा किए गए हैं। इस तरह की घातक और निष्ठुर गतिविधियों के चलते हमास के उपर आलोचना बढ़ गई है।
हालांकि, हमास का तर्क है कि उसने इस हमले में आम लोगों को निशाना नहीं बनाया। उसने इस हमले को “ऑपरेशन अल-अक़्सा फ़्लड” के नाम से पुकारा है और इसराइली बयानों को झूठा माना है।
इस पूरे मुद्दे में यह स्पष्ट है कि जब तक इस तरह के हमले होते रहेंगे, तब तक इस तरह की तुलनाएं और विवाद जारी रहेंगे। इसराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में, आम लोगों की सुरक्षा और उनके अधिकार बार-बार सवाल बनते जा रहे हैं।
अंत में, इस तरह के हमलों और उनके प्रतिक्रियाओं के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता की तलाश अभी भी जारी है और इसे प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक प्रयास की जरूरत है।
“आईएस के लड़ाके हमले में शामिल थे”
इस्लामिक स्टेट (आईएस) और हमास के बीच संबंध और उनके सहयोग की संभावना पर एक नई चर्चा उत्पन्न हुई है। 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए अल-अक़्सा फ़्लड ऑपरेशन में, कुछ ख़बरों के अनुसार, आईएस के समर्थकों ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
इसराइली सेना ने एक तस्वीर जारी की है जिसमें इस्लामिक स्टेट का झंडा दिखाया गया है। इसराइल का तर्क है कि यह झंडा उन्हें इसराइली सीमा के पास किबुत्ज़ सूफ़ा में हमले के दौरान मारे गए हमास लड़ाके के सामान में से मिला।
इस घटना के प्रतिक्रिया में, इसराइली विदेश मंत्रालय ने ट्विटर पर #हमासइज़आईएसआईएस हैशटैग का प्रचार शुरू किया। इसका मकसद था हमास को इस्लामिक स्टेट से जोड़ना और उसकी छवि को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करना। अरबी में भी एक हैशटैग बनाया गया जिसे ‘दाएश हमास’ कहा गया, जहां ‘दाएश’ इस्लामिक स्टेट को संदर्भित करता है।
आईएस के समर्थक टेलीग्राम अकाउंट सा’अत अल-ज़रक़ावी ने अपने समर्थकों से इस हैशटैग को निशाने पर लेने की बात कही, ताकि इस्लामिक स्टेट की छवि को साफ किया जा सके।
जबकि इसराइल और आईएस दोनों हमास के खिलाफ हैं, इसलिए इस संघर्ष में उनके समर्थकों का भाग लेना संभावित है। ऑनलाइन जिहादी तत्व अबु इमाद अल-नेराबी ने भी स्वीकार किया है कि कुछ मुवाहिद्दीनों ने हमले में भाग लिया।
लेकिन, इस संघर्ष में इस्लामिक स्टेट के समर्थकों को हमास के साथ सहयोग करने की सलाह देने वालों को चेतावनी दी गई है। इसराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में, इस्लामिक स्टेट का सहयोग और उसके समर्थकों की भूमिका एक महत्वपूर्ण पहलु में परिवर्तित हो सकती है।
इस्लामिक स्टेट हमास के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है?
इस्लामिक स्टेट (आईएस) और हमास के बीच तनाव की जड़ें गहरी हैं। जबकि दोनों ही संगठन इस्लाम के नाम पर कार्रवाई करते हैं, उनके दृष्टिकोण और उद्देश्य अलग हैं।
हमास, जो ग़ज़ा पट्टी में सत्ता में है, कई जिहादी और कट्टरपंथी इस्लामिक तत्वों द्वारा संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। इसकी प्रमुख वजह है उसके ईरान के साथ बढ़ते रिश्ते, जो सुन्नी जिहादी समुदाय में एक शिया राष्ट्र के रूप में देखा जाता है।
इस्लामिक स्टेट, जो अपने आप को सच्चे इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने वाला मानता है, हमास को अपने धार्मिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म का दुरुपयोग करने का आरोप लगाता है।
2018 में जनवरी में इस विरोधाभास का स्पष्ट उदाहरण सामने आया जब आईएस की सिनाई शाखा ने वीडियो जारी किया, जिसमें हमास के ख़िलाफ़ युद्ध की बात की गई थी। इस वीडियो में आईएस ने हमास पर ईरान के साथ मिलकर काम करने और ग़ज़ा में जिहादियों को दबाने का आरोप लगाया।
वीडियो में दिखाए गए दृश्य में एक हमास से जुड़े व्यक्ति की हत्या की गई थी, जिससे आईएस की हमास के प्रति घृणा की गहराई को दर्शाया गया।
इस वीडियो में एक और पुराना दृश्य भी शामिल था, जिसमें हमास के कट्टरपंथी लड़ाके एक मस्जिद में घुसे थे। इस घटना के बाद ऑनलाइन जिहादी समुदाय में हमास की आलोचना हुई थी।
इस वीडियो के जारी होने के बाद, इस्लामिक स्टेट और हमास के बीच टकराव की संभावना और भी बढ़ गई। इस्लामिक स्टेट का मानना है कि हमास असली जिहाद से भटक गया है और उसे सही पथ पर लाने के लिए संघर्ष करना चाहिए।
इस पूरे मामले में यह स्पष्ट है कि इस्लामिक स्टेट और हमास के बीच गहरे मतभेद हैं, जो समय समय पर उभर कर सामने आते हैं। दोनों संगठनों के बीच इस तनाव को समझना महत्वपूर्ण है ताकि मध्य पूर्व में चल रहे संघर्ष को बेहतर तरीके से समझा जा सके।
अल-अक़्सा फ़्लड ऑपरेशन के बाद इस्लामिक स्टेट का दृष्टिकोण में परिवर्तन?
इस्लामिक स्टेट (आईएस) और अन्य जिहादी संगठनों के बीच ग़ज़ा में इसराइली बमबारी के प्रति उनके दृष्टिकोण में अद्वितीयता है। जब दुनिया की अन्य जिहादी संस्थाएं इसराइली हमलों का विरोध कर रही थीं, तब आईएस ने अपनी चुप्पी कायम रखी।
जिहादी संगठन अक्सर ऐसी घटनाओं का इस्तेमाल अपने प्रचार प्रसार के लिए करते हैं। उनका मानना है कि इससे उन्हें नए समर्थक और योद्धा प्राप्त होते हैं। इसराइली हमलों के प्रति उनकी निंदा और विरोध उन्हें मुसलमान समुदाय में और अधिक प्रशंसा और समर्थन प्रदान करती है।
लेकिन इस्लामिक स्टेट का यह दृष्टिकोण अन्य जिहादी संगठनों से विभिन्न है। जब हमास ने इसराइल पर हमला किया, तो अल-क़ायदा ने उसे प्रशंसा दी और उसे एक हीरो माना। वे मानते हैं कि हमास का यह हमला 9/11 के हमलों से भी ज्यादा प्रभावशाली था।
इसके विपरीत, इस्लामिक स्टेट ने हमास के हमले पर कोई विचार नहीं प्रकट किया। इसका मुख्य कारण यह हो सकता है कि आईएस हमास को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है और उसे अपने जिहादी उद्देश्यों से भटका हुआ मानता है।
इस्लामिक स्टेट के साप्ताहिक समाचार पत्र अल-नाबा में प्रकाशित एक लेख में आईएस ने मुसलमानों से यहूदियों पर हमला करने का आह्वान किया। यह दिखाता है कि आईएस अब भ
ी अपने जिहादी उद्देश्यों पर डटा हुआ है और उसे अपने समर्थकों को उत्साहित करने के लिए नई रणनीतियाँ अपनानी होती हैं।
इस पूरे मामले में यह भी स्पष्ट होता है कि जिहादी संगठनों के बीच भी अंतर्निहित विचारधारा और रणनीतियों में अंतर है, जिससे उनके दृष्टिकोण और प्रतिक्रियाएं भी अलग होती हैं।