Table of Contents
चीन और भूटान के बीच हाल में बीजिंग में सीमा विवाद
चीन और भूटान के बीच हाल ही में बीजिंग में सीमा विवाद को लेकर हुई बातचीत में एक महत्वपूर्ण उल्लेखनीय प्रगति हुई है। इस 25वें दौर की बातचीत के परिणामस्वरूप, दोनों देशों ने सीमांकन की प्रक्रिया पर आगे बढ़ने को लेकर सहमति व्यक्त की है। यह एक महत्वपूर्ण चरण है, जो दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को हल करने की दिशा में बढ़ावा देता है।
इस बातचीत के दौरान, दोनों देशों ने “रेस्पॉन्सिबिलिटीज़ एंट फंक्शन्स ऑफ़ द जॉइंट टेक्निकल टीम ऑन डीलिमिटेशन एंड डीमार्केशन ऑफ़ द भूटान-चाइना बाउंड्री” पर सहमति पर हस्ताक्षर किए। इससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों देश सीमा विवाद को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ की डिप्लोमैटिक अफेयर्स एडिटर सुहासिनी हैदर का मानना है कि यह बातचीत 2021 में तय किए गए तीन चरण के रोडमैप को आगे बढ़ाती है। यह बातचीत 2016 से अटकी हुई थी, और इसके पुनरारंभ होने से दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की उम्मीद है।
भूटान के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है, क्योंकि उसे अपनी संप्रभुता को सुरक्षित रखते हुए भारत के हितों का भी ध्यान रखना होगा। भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद का समाधान न केवल इन दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है।
सुहासिनी हैदर का विचार है कि भूटान और चीन के बीच बातचीत का पुनरारंभ होना और उसमें प्रगति होना एक सकारात्मक संकेत है। वह आशा करती हैं कि आने वाले समय में दोनों देशों के बीच और भी अधिक समझौते होंगे और सीमा विवाद का स्थायी समाधान होगा।
इस पूरे मामले में, भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। भारत और भूटान के बीच गहरे संबंध हैं, और भारत चाहेगा कि भूटान की संप्रभुता और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए। इसलिए, भारत को इस मामले में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए और दोनों देशों के
बीच समझौते की प्रक्रिया में सहायक बनना चाहिए।
भूटान की सीमा उत्तर और पश्चिम में तिब्बत
भूटान, जिसे हिमालयी राजा के रूप में जाना जाता है, उत्तर और पश्चिम में चीन के तिब्बत स्वशासित प्रदेश से सीमित है। इस सीमा को लेकर चीन और भूटान के बीच अब तक कई बातचीतें हो चुकी हैं। 1984 से 2016 तक, दोनों देशों ने 24 दौर की बातचीत की, लेकिन 2017 में डोकलाम में भारतीय और चीनी सेना के बीच तनाव और फिर कोविड-19 महामारी के कारण 25वें दौर की बातचीत नहीं हो सकी।
चीन की तरफ़ से भूटान के पूर्व में नया फ्रंट खोलने की धमकी के बावजूद, दोनों देशों ने अलग-अलग स्तर पर बातचीत को जारी रखने का निर्णय लिया। 2021 में, दोनों देशों के राजनयिक एक्सपर्ट ग्रुप ने मुलाक़ात की और तीन चरण के रोडमैप पर सहमति व्यक्त की।
इस प्रक्रिया का अगला चरण 2023 में हुआ, जब दोनों देशों की तकनीकी टीमों की बैठक हुई। इस बैठक में सीमांकन के विविध पहलुओं पर चर्चा हुई।
अख़बार ‘द हिंदू’ के अनुसार, भूटान के प्रधानमंत्री डॉक्टर लोटे छृंग ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि चीन के साथ उनकी वार्ता “आगे बढ़ रही है”। उन्होंने आशा व्यक्त की कि जल्द ही सीमा निर्धारण पर सहमति हो सकती है।
भूटान में अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं, और प्रधानमंत्री उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी सरकार अपने कार्यकाल में ही रोडमैप का काम पूरा कर सकेगी। इसी दिशा में, भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी की हाल ही में चीन यात्रा हुई, जिससे यह संकेत मिलता है कि दोनों देशों के बीच सकारात्मक प्रगति हो रही है।
इस पूरे मामले में, भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। भारत और भूटान के बीच गहरे संबंध हैं, और भारत चाहेगा कि भूटान की संप्रभुता और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए। इसलिए, भारत को इस मामले में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए और दोनों देशों के बीच समझौते की प्रक्रिया में सहायक बनना चाहिए।
तीन चरण का रोडमैप क्या है?
2021 में भूटान के विदेश मंत्री और चीनी डिप्टी विदेश मंत्री ने एक समझौता पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत, भूटान और चीन के बीच सीमांकन को स्पष्ट रूप से तय करने के लिए एक साझा तकनीकी टीम की स्थापना की गई। इसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा को स्थिर और स्पष्ट रूप से निर्धारित करना था।
फिर भी, भूटान और चीन के बीच राजनीतिक संबंध अभी तक स्थापित नहीं हुए हैं। भूटान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों से संबंध बनाने में रुचि नहीं दिखाई।
समझौते का तीन चरणीय रोडमैप इस प्रकार है: पहला चरण, सीमांकन पर सहमति; दूसरा चरण, सीमांकन स्थलों की मौके पर जाँच; और तीसरा और अंतिम चरण, आधिकारिक सीमा निर्धारण। इस प्रक्रिया का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को स्थायी रूप से समाधान करना है।
भारत को क्यों है चिंता?
2020 में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच तनाव के बाद भारत और चीन के बीच रिश्तों में तल्खी आ गई. ऐसे में अपने क़रीबी पड़ोसी के चीन के साथ बेहतर होते रिश्ते भारत के लिए चिंता का विषय है.
अख़बार लिखता है कि सीमांकन को लेकर जारी चर्चा में डोकलाम पर क्या बात हो रही है, इस पर भारत की नज़र है.
ऐसा इसलिए क्योंकि चीन ने सीमांकन के लिए जो प्रस्ताव दिया है, उसमें पश्चिम में डोकलाम के साथ उत्तर के क्षेत्रों (जाम्परलुंग और पासमलुंग घाटियं जन पर चीन अपना दावा करता है) के बीच “अदला-बदली की व्यवस्था” की बात है. और ये भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है.
डोकलाम ट्राई-जंक्शन भारत और उत्तर-पूर्व को जोड़ने वाले “सिलीगुड़ी गलियारे” के बेहद क़रीब है और भारत नहीं चाहेगा कि इस गलियारे के आसपास की किसी जगह तक चीन की पहुँच बने.
2017 में डोकलाम में पैदा हुए विवाद के बाद से चीन ने डोकलाम के पठार के आसपास सेना की तैनाती दोगुनी कर दी है.
अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के अनुसार, चीन यहां “हथियारों के अंडरग्राउंड गोदाम, नई सड़कें और भूटान की सीमा के पास के विवादित इलाक़ों में गांव बसा रहा है.”
भारत को उम्मीद थी कि 2017 में चीन अपने वादे के अनुसार, डोकलाम में तनाव की जगह से पीछे हटेगा, लेकिन पेंटागन की र्पोर्ट भारत की उम्मीद के विपरीत है.
चीन भूटान के साथ कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने की मांग कर रहा है और थिंपू में अपना दूतावास खोलना चाहता है. यह भी भारत के लिए भी चिंता का विषय है.
सुहासिनी हैदर लिखती हैं कि नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव जैसे भारत के पड़ोसी मुल्कों में चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. ऐसे में भूटान में चीन की मौजूदगी भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकती है.
हालांकि भूटान के नेतृत्व ने अब तक कहा है कि वो जो भी फ़ैसला लेगा उसमें वो भारत के हितों का ध्यान रखेगा और अब तक वो इस तरह के मुद्दों पर भारत से चर्चा करता रहा है.