इसराइल और हमास के बीच जारी संघर्ष में, हिज़बुल्लाह ने अपने रुख में नरमी दिखाई है। हिज़बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह ने हाल ही में बेरूत में दिए गए भाषण से यह संकेत मिलता है कि उनका संगठन अभी इसराइल के खिलाफ कोई पूर्ण युद्ध आरंभ करने का इरादा नहीं रखता।
गज़ा पट्टी में उत्पन्न तनावपूर्ण स्थिति, जो पिछले महीने इसराइल-हमास संघर्ष के चलते और भी विकट हो गई थी, के मद्देनजर नसरल्लाह की यह प्रतिक्रिया संयमित और सोच-समझकर उठाया गया कदम मानी जा रही है।
नसरल्लाह की भाषणबाजी में जो नहीं कहा गया, उसका महत्व भी कम नहीं है। उनके द्वारा इसराइल के खिलाफ युद्ध की घोषणा न करना एक महत्वपूर्ण संकेत है।
लेबनान में नसरल्लाह के इस अप्रत्याशित रुख की संभावना का अनुमान शायद ही किसी ने लगाया हो। उनका यह कदम न केवल लेबनान में, बल्कि पूरे मध्य-पूर्वी क्षेत्र में शांति की दिशा में एक सकारात्मक संकेत माना जा सकता है।
इस तरह के विकास से यह भी स्पष्ट होता है कि हिज़बुल्लाह, जो कि इसराइली सीमा पर हमले करने वाला एक प्रमुख चरमपंथी समूह है, अब अपनी रणनीति में बदलाव ला रहा है। यह बदलाव न केवल उनके अपने संगठन के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए भी एक नई दिशा और नए अवसर प्रदान कर सकता है।
इस बदलते परिदृश्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि हिज़बुल्लाह के इस नए रुख का इसराइल-हमास संघर्ष पर क्या प्रभाव पड़ेगा और क्या इससे क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति की स्थापना में मदद मिलेगी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस विकास को करीब से देख रहा है और शांति की दिशा में किसी भी सकारात्मक कदम का स्वागत करेगा।
नसरल्लाह का दावा: 7 अक्टूबर की कार्रवाई, फ़लस्तीनी संगठन का पूर्ण ऑपरेशन
हिज़बुल्लाह ने इसराइल की हमास पर की गई कार्रवाई के जवाब में इसराइली सीमा पर हमले तेज़ कर दिए, जिससे इसराइली सेना को उस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ानी पड़ी. हमास की इच्छा है कि हिज़बुल्लाह अपने हमलों को और भी अधिक तीव्र करे.
हिज़बुल्लाह के नेता नसरल्लाह ने अपने योद्धाओं द्वारा किए गए आक्रमणों का समर्थन किया है.
उन्होंने अपने भाषण में बताया, “जो कुछ भी हमारे सामने घटित हो रहा है, वह बेहद महत्वपूर्ण है. जिन लोगों का मानना है कि हिज़बुल्लाह को युद्ध में तत्काल कूद पड़ना चाहिए, उन्हें लगता है कि सीमा पर हमारी कार्रवाई अपर्याप्त है. लेकिन यदि हम निष्पक्षता से विचार करें, तो हमें इसे एक बड़ी कार्रवाई के रूप में देखना चाहिए.”
नसरल्लाह ने यह भी बताया कि हाल के सप्ताहों में हिज़बुल्लाह के 57 सदस्य मारे गए हैं.
उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि हिज़बुल्लाह के पास अपनी कार्रवाई को और तेज़ करने का विकल्प हमेशा खुला है.
“मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि यह अंतिम कार्रवाई नहीं है. मैं इसे पर्याप्त नहीं मानता,” नसरल्लाह ने कहा.
नसरल्लाह ने यह भी कहा कि 7 अक्टूबर को हमास का हमला पूरी तरह से फ़लस्तीनी प्रयास था, जिसे गुप्त रखा गया था और इसकी जानकारी हमास के सहयोगियों को भी नहीं थी.
उन्होंने दावा किया कि इस ऑपरेशन के बारे में उन्हें या ईरान को कोई जानकारी नहीं थी और इसका किसी क्षेत्रीय या अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से कोई संबंध नहीं था.
बेरूत के एक दक्षिणी उपनगर में तपती गर्मी में आयोजित एक रैली के दौरान नसरल्लाह के भाषण के समय, उपस्थित लोग “नसरल्लाह हम तुम्हारे साथ हैं” के नारे लगा रहे थे.
इसी समय, एक नकाबपोश व्यक्ति छत पर खड़ा होकर, एक भारी मशीन के साथ ड्रोन को रोकने की तैयारी में था, जो आसपास के हालात पर नजर रख रहा था.
हिज़बुल्लाह जंग में कब उतरेगा?
यह इलाका हिज़बुल्लाह का गढ़ है. यहां इस इस्लामी समृद्धि के समर्थक बड़ी संख्या में मौजूद हैं. अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देश इसे आतंकवादी संगठन मानते हैं.
इस भाषण को सुन रही 17 साल की पत्रकारिता की छात्रा फातिमा ने बीबीसी से कहा, “मुझे नहीं लगता कि वो पूरे देश को जंग की आग में झोंकने जा रहे हैं. लेकिन वो जो भी फैसले ले रहे हैं, मैं उससे पूरी तरह सहमत हूं. लेकिन अगर जंग होती है तो भी हमें कोई डर नहीं है. क्योंकि एक अच्छे मकसद के लिए जान भी चली जाए तो कोई बात नहीं. हम अपने फ़लस्तीनी भाई और बहनों के साथ खड़े हैं.’’
फिलहाल ऐसे संकेत हैं कि हिज़बुल्लाह फिलहाल ग़ज़ा की जंग को हमास के भरोसे ही छोड़े रखना चाहता है.
लेकिन हमास हारती हुई दिखेगा तो समीकरण बदल सकते हैं. अगर इसराइल को ग़ज़ा में जीत मिलती है तो इसकी क़ीमत बड़ी जंग में तब्दील हो सकती है. हिज़बुल्लाह जंग के मैदान में उतर सकता है.
हसन नसरल्लाह हैं? कौन
हिज़बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह ने हाल ही में अपने एक भाषण में, सात अक्टूबर को इसराइल पर हमास द्वारा किए गए हमले की सराहना की, जिसमें 1400 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.
शिया धर्मगुरु नसरल्लाह 1992 से हिज़बुल्लाह के नेतृत्व में हैं और उन्हें इसके राजनीतिक और सैन्य उद्देश्यों को मजबूत करने का श्रेय जाता है.
हसन नसरल्लाह के ईरान और वहां के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली ख़ामनेई के साथ गहरे संबंध हैं, जो 1981 से शुरू हुए थे.
यह वही वर्ष था जब ईरान के पहले सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह रुहोल्लाह खोमैनी ने नसरल्लाह को लेबनान में अपना प्रतिनिधि बनाया था.
विगत कई वर्षों से नसरल्लाह सार्वजनिक दृश्य से अनुपस्थित हैं, जिसका कारण यह माना जाता है कि उन्हें इसराइल द्वारा उनकी हत्या किए जाने का भय है.
हिज़बुल्लाह क्या है?
हिज़बुल्लाह, जिसका अर्थ है ‘अल्लाह का दल’, लेबनान का एक शिया इस्लामी राजनीतिक दल और अर्द्धसैनिक समूह है, जो ईरान से समर्थन प्राप्त करता है. इसकी स्थापना 1980 के दशक के आरंभ में हुई थी, जब लेबनान पर इसराइल का कब्जा था, और इसे ईरान से वित्तीय और सैन्य सहायता प्राप्त थी. इस संगठन का उद्देश्य दक्षिणी लेबनान में शिया समुदाय की सुरक्षा करना था.
हिज़बुल्लाह की विचारधारा की जड़ें 1960 और 1970 के दशकों में लेबनान में शिया समुदाय के पुनर्जागरण से जुड़ी हुई हैं. 1992 से इसकी अगुवाई हसन नसरल्लाह कर रहे हैं, जिन्होंने इसे एक राजनीतिक और सैन्य शक्ति में परिवर्तित किया है. इसराइल द्वारा वर्ष 2000 में लेबनान से पीछे हटने के बाद, हिज़बुल्लाह ने अपनी सैन्य शाखा, इस्लामिक रेज़िस्टेंस को और अधिक मजबूत किया.
लेबनान की राजनीति में इसका प्रभाव इतना बढ़ा कि इसने देश की कैबिनेट में वीटो पावर हासिल कर ली. हिज़बुल्लाह पर इसराइली और अमेरिकी ठिकानों के खिलाफ बमबारी और षड्यंत्र करने के आरोप लगे हैं, और इसे पश्चिमी देशों, इसराइल, अरब खाड़ी के देशों और अरब लीग द्वारा ‘आतंकवादी’ संगठन माना जाता है.
2011 में सीरिया में गृहयुद्ध शुरू होने पर, हिज़बुल्लाह ने बशर अल-असद के समर्थन में हजारों लड़ाकों को भेजा, जिससे विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस लेने में मदद मिली, खासकर लेबनानी सीमा के पास के पहाड़ी इलाकों में. इसराइल ने सीरिया में ईरान और हिज़बुल्लाह से जुड़े ठिकानों पर कई बार हमले किए हैं, हालांकि यह अक्सर इन हमलों की पुष्टि नहीं करता है. हिज़बुल्लाह की सीरिया में भूमिका ने लेबनान के भीतर भी तनाव बढ़ाया है.
ईरान के साथ इसके गहरे संबंधों और सीरियाई शिया राष्ट्रपति के प्रति समर्थन के कारण, हिज़बुल्लाह और सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब खाड़ी देशों के बीच दुश्मनी और भी गहरी हो गई है.