“यदि कीमतें अनुकूल हों, तो भारत की योजना वेनेज़ुएला से कच्चे तेल का आयात करने की है।”
हालिया बयान में भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, श्री हरदीप सिंह पुरी ने उल्लेख किया कि भारत वेनेज़ुएला से कच्चे तेल की खरीद पर विचार कर रहा है, बशर्ते कि यह तेल बाजार में सस्ती दरों पर उपलब्ध हो। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय रिफाइनरियां पहले भी वेनेज़ुएला के तेल का उपयोग कर चुकी हैं और यदि वेनेज़ुएला का तेल फिर से बाजार में आता है, तो इससे वैश्विक तेल कीमतों पर महत्वपूर्ण असर पड़ सकता है।
भारत, जो कि विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है, अपनी ऊर्जा जरूरतों का लगभग 80 प्रतिशत से अधिक विदेशों से आयात करता है। इस विशाल आयात निर्भरता को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, भारत ने अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की दिशा में कई पहल की हैं। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का विकास, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज शामिल है।
इस प्रक्रिया में, वेनेज़ुएला के कच्चे तेल की संभावित खरीद न केवल भारत के लिए लागत कुशल हो सकती है, बल्कि यह वैश्विक ऊर्जा बाजारों में एक नया संतुलन भी स्थापित कर सकती है। वेनेज़ुएला का तेल अपनी गुणवत्ता और आर्थिक दरों के लिए जाना जाता है, और यदि भारत इसे अपने ऊर्जा मिश्रण में शामिल करता है, तो यह भारत की ऊर्जा नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत हो सकता है।
मंत्री महोदय की टिप्पणियां इस बात का संकेत हैं कि भारत अपनी ऊर्जा नीति में लचीलापन और विविधता लाने के लिए प्रतिबद्ध है, और वह वैश्विक ऊर्जा बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच अपने हितों की रक्षा के लिए सजग है। इस दिशा में वेनेज़ुएला से तेल खरीदना एक सामरिक कदम हो सकता है, जो भारत को अधिक आत्मनिर्भर और ऊर्जा सुरक्षित बनाने की दिशा में मदद करेगा।
वेनेज़ुएला की ऊर्जा बाजार में फिर से एंट्री
2019 में, अमेरिका ने निकोलस मादुरो के 2018 के चुनावों में दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उनकी सरकार को दंडित करने के मकसद से वेनेजुएला पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे। अमेरिका और कई पश्चिमी सरकारों ने मादुरो के दोबारा चुने जाने को एक दिखावा बताकर खारिज कर दिया था।
इन प्रतिबंधों के कारण, वेनेजुएला की सरकारी तेल कंपनी PDVSA को तेल निर्यात करने से रोक दिया गया था, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रतिबंध वेनेजुएला की सरकार को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने और विपक्ष का समर्थन करके देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए एक व्यापक रणनीति का हिस्सा थे।
हालांकि, कुछ हफ्ते पहले एक बदलाव आया जब अमेरिका ने वेनेजुएला के तेल व्यापार पर कुछ प्रतिबंधों में ढील दी। यह परिवर्तन वेनेजुएला सरकार और विपक्षी दलों के बीच 2024 के चुनावों के लिए हुए एक समझौते के परिणामस्वरूप आया। समझौते में यह निर्धारित किया गया कि आगामी चुनाव अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की निगरानी में होंगे, जिनमें यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी शामिल होंगे।
प्रतिबंधों में ढील देने का यह कदम राजनीतिक संवाद को प्रोत्साहित करने और वेनेजुएला के लंबे समय से चले आ रहे संकट का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए उठाया गया है। इससे वेनेजुएला को तेल और गैस के उत्पादन, बिक्री और निर्यात करने की छह महीने की अवधि मिली है, जिसमें वह पहले लगाए गए प्रतिबंधों के बिना काम कर सकता है। इस अवधि में वेनेजुएला जितने चाहे उतने ग्राहकों को अपने उत्पाद बेच सकता है और जितनी चाहे उतनी जगह अपने उत्पाद भेज सकता है।
प्रतिबंधों के हटने से वेनेजुएला के तेल क्षेत्र के लिए जो पहले निवेश की कमी, रखरखाव की अनदेखी और कुशल पेशेवरों के पलायन के कारण गिरावट में था, एक नई उम्मीद जगी है। यह देश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के लिए एक जीवनरेखा है, जो तेल राजस्व पर भारी रूप से निर्भर है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए, वेनेजुएला के तेल की वापसी से आपूर्ति बढ़कर वैश्विक तेल की कीमतों को कम कर सकती है। यह उन देशों के लिए अवसर खोलता है जो अपने ऊर्जा स्रोतों को विविधता प्रदान करने की तलाश में हैं, जैसे कि भारत, जो मध्य पूर्वी तेल पर अपनी निर्भरता को कम करने के विकल्पों की खोज कर रहा है।
प्रतिबंधों को ढीला करने का निर्णय बिना आलोचकों के नहीं है, जो तर्क देते हैं कि यह मादुरो की सरकार को बिना लोकतांत्रिक सुधारों की ठोस कदमों की सुनिश्चितता के वित्तीय बढ़ावा दे सकता है। फिर भी, यह वेनेजुएला के साथ संलग्न होने की ओर एक सावधानीपूर्ण कदम प्रतिनिधित्व करता है, जिसका उद्देश्य कूटनीतिक साधनों के माध्यम से एक अधिक स्थिर और लोकतांत्रिक वातावरण को बढ़ावा देना है।
स्थिति गतिशील बनी हुई है, और वैश्विक समुदाय इस बात पर नजर रखे हुए है कि वेनेजुएला के तेल की पुनः प्रविष्टि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर कैसे प्रभाव डालेगी। 2024 के चुनावों का परिणाम विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा, जो वेनेजुएला की भू-राजनीतिक और आर्थिक दिशा को बदल सकता है और उसके विश्व के साथ संबंधों को भी।
संक्षेप में, अमेरिका की वेनेजुएला के तेल निर्यात के संबंध में हालिया नीति में समायोजन एक महत्वपूर्ण क्षण है जो देश के आर्थिक और राजनीतिक भविष्य को पुनर्परिभाषित कर सकता है। यह ऊर्जा राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के बीच जटिल अंतर्संबंधों को भी उजागर करता है,
तेल की आपूर्ति पर भू-राजनीतिक संघर्षों का प्रभाव
भारत की ऊर्जा नीतियों में एक प्रमुख चिंता का विषय है कच्चे तेल के आयात पर उसकी अत्यधिक निर्भरता, जिसका सीधा संबंध विश्व बाजार में तेल की कीमतों की अनिश्चितताओं से है। इसके अलावा, तेल उत्पादक देशों में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव भी इस समस्या को और गहरा देते हैं।
वर्तमान में, इसराइल और हमास के मध्य जारी संघर्ष के परिणामस्वरूप, मध्य-पूर्व से आने वाले तेल की कीमतों में वृद्धि की आशंका जताई जा रही है। इस प्रकार की आशंकाएं भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टिकोण से चिंताजनक हैं।
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत ने अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की दिशा में कदम उठाए हैं। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास, वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों की खोज और अन्य देशों के साथ ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है।
फिर भी, यह स्पष्ट है कि निकट भविष्य में कच्चे तेल का आयात भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए एक महत्वपूर्ण घटक बना रहेगा। इसके लिए भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा रणनीति में लचीलापन और दूरदर्शिता शामिल करनी होगी।
हाल ही में, केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, श्री हरदीप सिंह पुरी ने भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के प्रति चिंता व्यक्त की है, जो सप्लाई चेन्स को प्रभावित कर सकती हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत को इन अनिश्चितताओं के प्रति सजग रहना होगा और संभावित व्यवधानों के लिए तैयार रहना होगा।
मंत्री जी ने यह भी सुनिश्चित किया कि सरकार इन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रतिबद्ध है और आपूर्ति में किसी भी प्रकार की बाधा को रोकने के लिए उचित कदम उठाएगी।
इस प्रकार, भारत की ऊर्जा नीति और रणनीति इन भू-राजनीतिक चुनौतियों के प्रति एक संतुलित और समग्र दृष्टिकोण अपना रही है, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और आर्थिक विकास की गति बनी रहे। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और घरेलू नवाचार दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
अंततः, भारत का लक्ष्य ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होना है, जिससे वह वैश्विक बाजार की अनिश्चितताओं से अपने आप को अलग कर सके और एक स्थिर तथा सुरक्षित ऊर्जा भविष्य की ओर बढ़ सके।
वेनेज़ुएला क्यों?
नरेंद्र तनेजा ऊर्जा नीति और वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य के विशेषज्ञ हैं।
उनका मानना है कि भारत द्वारा वेनेज़ुएला से क्रूड ऑयल की खरीदारी पर विचार करना अप्रत्याशित नहीं है।
तनेजा के अनुसार, “पूर्व में वेनेज़ुएला ने भारत को बड़ी मात्रा में तेल की आपूर्ति की है। जब वहां तेल का उत्पादन चरम पर था, तब भारतीय कंपनियां वहां से बड़े पैमाने पर तेल खरीदती थीं। लेकिन बाद में, वहां के उत्पादन में कमी आई और राजनीतिक अस्थिरता के कारण उनका निर्यात लगभग शून्य हो गया। इसके अलावा, अमेरिकी प्रतिबंधों ने भी वहां से तेल की आवक को लगभग रोक दिया था।”
नरेंद्र तनेजा ने यह भी कहा, “अब वेनेज़ुएला अपने तेल उद्योग को पुनः खोल रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील दी गई है और अमेरिका खुद भी वेनेज़ुएला से तेल खरीद रहा है। इसलिए वेनेज़ुएला का तेल फिर से अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध हो रहा है। और यदि वेनेज़ुएला अच्छे दामों पर तेल प्रदान करता है, तो भारत इसे अवश्य खरीदेगा।”
वेनेज़ुएला के पास विश्व के सबसे बड़े तेल भंडार हैं।
तनेजा का कहना है कि वेनेज़ुएला का क्रूड थोड़ा भारी होता है, लेकिन भारत में ऐसे क्रूड ऑयल को साफ करने और प्रोसेस करने की क्षमता रखने वाली रिफाइनरीज़ मौजूद हैं।
भारत की रणनीति कच्चे तेल पर
केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में कहा था कि भारत कच्चे तेल की उपलब्धता पर पैनी नज़र रख रहा है.
साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि भारत अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता ला रहा है और जब बाज़ार में ज़्यादा ऊर्जा उपलब्ध होती है तो ये हमेशा अच्छी ख़बर होती है.
नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि भारत की नीति बहुत स्पष्ट है- कच्चे तेल की आपूर्ति के विविध स्रोत हों और यह अच्छे दाम पर मिले.
वे कहते हैं, “एक तो ये है कि हम जो तेल ख़रीदते हैं उसे किसी एक भौगोलिक क्षेत्र से न ख़रीद कर तमाम उपलब्ध स्रोतों से लिया जाए चाहे वह मध्य-पूर्व, रूस या अमेरिका हो जिससे किसी एक देश या क्षेत्र पर आप निर्भर न रहे. विविध आपूर्ति रखना भारत की रणनीति है.”
तनेजा यह भी कहते हैं, “आज जबकि भारत अपनी ज़रूरत का 87 प्रतिशत तेल आयात कर रहा है, तो सोच यही है किसी एक क्षेत्र या देश पर निर्भर न रहें.”
वे कहते हैं, “इस मामले की भारत की नीति ‘किसी से प्रेम नहीं और किसी से नफ़रत नहीं’ की है. भारत वहीं से तेल लेना चाहेगा जहां से यह सस्ता या अच्छी शर्तों पर मिले.”
तनेजा कहते हैं, “दूर देशों से कच्चा तेल ख़रीदते वक़्त कई बातों पर ध्यान दिया जाता है. जैसे- कच्चे तेल की क़ीमत, तेल बेचने वाले देश की भारत से भौगोलिक दूरी, जहाज़ से तेल लाने की कीमत और बीमा करने की कीमत, क्रेडिट के लिए कितना समय मिल रहा है और भुगतान की शर्तें क्या हैं.”
वे कहते हैं, “इन सब चीज़ों को ध्यान में रखकर देखा जाता है कि अर्थशास्त्र क्या बनता है. अर्थशास्त्र ठीक बैठता है तभी दूर देशों से तेल ख़रीदा जाता है.”
मिसाल के तौर पर तनेजा रूस की बात करते हुए कहते हैं, “भारत रूस से भारी मात्रा में तेल इसलिए ख़रीदता है क्योंकि वो सस्ते दाम पर देने के साथ-साथ इसे भारतीय बंदरगाहों तक भी पहुंचा देता है.”